एडवोकेट शुभम भारद्वाज
हरिद्वार।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत मजदूरी भुगतान में बड़ा घोटाला सामने आया है। बहादराबाद ब्लॉक के ग्राम सजन पुर पीली में मजदूरों की मेहनताना राशि ग्राम प्रधान के परिजनों, बड़े भूमिधारकों और मजदूरी करने में असमर्थ बुजुर्गों के खातों में ट्रांसफर की गई।
यह खुलासा सूचना का अधिकार (RTI) के तहत मांगी गई 10 बिंदुओं की जानकारी में हुआ है। आरटीआई में ग्राम विकास अधिकारी द्वारा प्रस्तुत भुगतान विवरण से स्पष्ट हुआ कि अधिकांश खाताधारक ग्राम प्रधान के परिवार या प्रभावशाली भूमि धारकों से जुड़े हैं। इनमें कई ऐसे लोग शामिल हैं जिनके पास जमीन-जायदाद, ट्रैक्टर-ट्रॉली है, और जिनसे मजदूरी करने की अपेक्षा ही नहीं की जा सकती।
सूत्रों के अनुसार, यह पैसा संबंधित खाताधारकों से वापस लिया जाता है और पूरा खेल ग्राम प्रधान व सचिव की मिलीभगत से चलता है। इस गड़बड़ी ने मनरेगा योजना की पारदर्शिता और गरीब मजदूरों के अधिकारों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
📌 क्या कहती है नियमावली
मनरेगा अधिनियम 2005 के अनुसार –
प्रत्येक ग्रामीण परिवार का कोई भी वयस्क सदस्य, जो श्रम करने में सक्षम हो, काम मांग सकता है।
सक्षम, भूमि धारक या बुजुर्ग जिन्हें मजदूरी करना संभव नहीं, उनके नाम पर भुगतान करना अधिनियम का उल्लंघन है।
धारा 13 और 17 – ग्राम सभा की जिम्मेदारी है कि योजना के कार्यों की निगरानी और सामाजिक अंकेक्षण (Social Audit) किया जाए।
धारा 25 – नियमों का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों पर कानूनी और विभागीय कार्रवाई अनिवार्य है।
✒️ सवाल उठे
जब नियम स्पष्ट रूप से कहते हैं कि केवल श्रमिकों को ही मजदूरी दी जा सकती है, तो भुगतान भूमिधारकों, बुजुर्गों और प्रधान परिवार को क्यों किया गया?
क्या ग्राम सभा और सामाजिक अंकेक्षण केवल कागजों तक सीमित रह गया है?
इस पूरे मामले में ग्राम विकास अधिकारी और प्रधान की भूमिका की जांच कौन करेगा?
📢 कार्रवाई की मांग
ग्रामवासियों और आरटीआई कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस घोटाले की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। दोषी प्रधान, सचिव और ग्राम विकास अधिकारी पर विभागीय व कानूनी कार्यवाही की जाए ताकि गरीब मजदूरों का हक मारा न जा सके। साथ ही, मनरेगा कार्यों का पारदर्शी सामाजिक अंकेक्षण सुनिश्चित किया जाए।
